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आप सभी का 7 दिवसीय राजयोग कोर्स के पाँचवे दिन में आप का स्वागत है 🙏🏻🙏🏻
5⃣ पाँचवा दिन
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” सृष्टि नाटक का रचयिता और निर्देशक कौन है ?”
=======सृष्टि चक्र या काल चक्र का रहस्य
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✺ समय को काल कहा जाता है और समय के अनुसार मनुष्य का परिवर्तन भी सही समय पर उचित दिशा में होना अति आवश्यक है।
भगवानुवाच :- परिवर्तन संसार का नियम है। परिवर्तन होता आ रहा है, प्रलय नहीं होती है।
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✺ चक्र अर्थात जिसकी न आदि होती है न अंत होता है। चक्र जो नित्य प्रति चलता रहता है। जैसे दिन और रात का चक्र है,चलता रहता है। रात के बाद दिन, दिन के बाद रात चलता रहता है , इसकी अवधि है 24 घंटे।
जीवन चक्र है : बाल्यावस्था, युवावस्था, प्रौढ़ावस्था, वृद्धावस्था फिर मृत्यु के बाद अगला जन्म। इस प्रकार चक्र चलता रहता है।इसकी अवधि है जितना जिसका आयुष्य। जल चक्र है : सागर से बादल बनते हैं वह बादल बरसते हैं। वह पानी नदियों के माध्यम से फिर से सागर में पहूँचता है। ऋतुओं का चक्र है चलता रहता है, उसकी अवधि है एक वर्ष।
✺ इसी तरह सृष्टि चक्र है ये भी कभी बन्द नहीं होता, चलता रहता है। हरेक चक्र की एक समय सीमा होती हैं और हरेक चक्र की 4 अवस्थाये होती है। इसी तरह (सृष्टि चक्र) इसके भी 4 भाग(आस्थाएं) हैं। सतयुग, त्रेतायुग , द्वापरयुग और कलयुग।
हर एक चक्र का समय होता है जैसे दिन और रात के चक्र को 24 घंटे का टाइम दे देते हैं। 12 मास का चक्र , 7 दिन का चक्र ।
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इसी तरह ये सृष्टि चक्र का समय भी 5000 वर्ष है।
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✺ हिंदु धर्म के हिसाब से देखा जाये तो महाभारत युद्ध हुआ था??
✍ 5000 साल पहले महाभारत युद्ध हुआ था और उस समय भगवान के महावाक्य थे- *यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।।7।।*
भावार्थ:- हे भारत ! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ अर्थात साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ । सज्जनों की रक्षा एवं दुष्टों के विनाश और धर्म की पुनःस्थापना के लिए मैं विभिन्न युगों (कालों) मैं अवतरित होता हूं ।
।।7।।
अब यदि इस समय को देखें तो फिर से वही महाभारत का काल, अधर्म का युग आ चुका है।
✺ इस्लाम धर्म में भी कहा हुआ है कि हर 5000 साल के बाद कयामत का समय आता है। जब सब कब्रें खुलेंगी और सबका हिसाब- किताब लिया जाएगा और उस अनुसार उनको सज़ा दी जायेगी, उनके धर्म के हिसाब से वह समय फिर से आ रहा है।
✺ क्रिश्चियन धर्म के हिसाब से भी देखा जाये तो दिखाया जाता है कि क्राइस्ट के 3000 वर्ष पूर्व सृष्टि पर पैराडाइज था, स्वर्ग था। ईसाई धर्म की स्थापना होकर 2000 साल हो गए। इस तरह कुल 5000 साल हो गये।
✺ सृष्टि चक्र का समय भी 5000 वर्ष है। 5000 वर्ष में एक बार यह चक्र पूरा होता है। सृष्टि तो अनादि है लेकिन यह चक्र 5000 वर्ष में एक बार रिपीट होता है। जैसे 24 घंटे बाद फिर से नयी सुबह आती है ऐसे ही 5000 वर्ष के बाद फिर ऐसी दुनिया 🌐 (सतयुग) आती है यह चक्र 5000 वर्ष में एक बार रिपीट होता है।
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✺ नीचे चित्र में चक्र के बीच में जो दिखाया है वो स्वास्तिका दिखाई। कोई भी शुभ कार्य होता है तो भी हम स्वास्तिका बनाते हैं घरों में। स्वास्तिका क्यों बनाते हैं?? शुभ का प्रतीक है। लेकिन ये क्यों बनाई गयी है देखिए स्वास्तिका में चारों भाग बिल्कुल बराबर बनाते हैं छोटा बड़ा नहीं बनाते। एक तो यह सृष्टि चक्र को 4 बराबर भागों में बाँटती है। दूसरा इसको कहा जाता है सु +अस्ति= स्वास्तिका। सु मतलब शुभ। अस्ति मतलब जो सदैव है। ये स्वास्तिका इस चीज़ को दर्शाती है कि सृष्टि चक्र में जो कुछ भी हो रहा है वो सब ठीक हो रहा है सब शुभ हो रहा है। इसलिए आपने देखा होगा घरों में भी एक स्लोगन लगाते हैं।
हे अर्जुन- जो हुआ सो अच्छा, जो हो रहा है वह भी अच्छा, जो होने वाला है वह और भी अच्छा होगा।इसलिए तुम निश्चिंत रहो, तुम चिंता नहीं करो।
लेकिन कई बार हम कहते- ये नहीं , ये होना चाहिए। माना भगवान की बात पर (रचना पर) हम उँगली उठा रहे हैं उसमें कमी निकाल रहे हैं एक तरह से लेकिन जो हो रहा है वो बिल्कुल शुभ हो रहा है।
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>>> एक कहानी सुनाते हैं।
एक राजा था।
उसका एक मंत्री था और वो मंत्री बड़ा विद्वान था।एक बार राजा अपने मंत्री और कुछ सिपाहियों को लेकर जंगल में शिकार खेलने गया।शिकार खेलते- खेलते अचानक राजा की अँगुली में चोट लग गयी और उसका खून निकलने लगा।अब मंत्री ने देखा और कहा – महाराज जो हुआ सो अच्छा।अब राजा को तो ये सुनकर बहुत गुस्सा आया।मेरी ऊँगली
कट गयी और इसने कहा महाराज जो हुआ सो अच्छा। बड़ा बुरा लगा।ये कैसा मंत्री है मेरा हितैषी है या मेरा दुश्मन है, जो मेरा नुकसान होने पर ये कह रहा अच्छा हुआ। उसने सिपाहियों को कहा जाओ मंत्री को ले जाकर जेल में डाल दो। अब वो चला गया।राजा आगे शिकार पर गया। कुछ जंगली लोग जो थे, उन लोगों ने देवी पर बलि चढ़ाने के लिए राजा को पकड़ लिया।अब सारी तैयारी हो गयी बलि चढ़ाने की।राजा को ले जाने लगे तो अचानक पण्डित की नजर उस पर पड़ी।उसने कहा ठहर जाओ।अनर्थ हो जाएगा , देवी रुष्ठ हो जायेगी क्योंकि ये खंडित बलि है देवी स्वीकार नहीं करेंगी।इसको छोड़ दो।तब राजा के दम में दम आया। उसने कहा- भगवान बहुत अच्छा हुआ जो मेरी ऊँगली कट गयी।ये बात ख्याल में आते ही उसे मंत्री की याद आई क्योंकि मंत्री ने कहा था, महाराज जो हुआ अच्छा हुआ।वो फौरन अपने राज्य में गया और मंत्री को छुड़ाया और कहा मंत्री तुमने सही कहा था लेकिन मैंने तुम्हें गलत समझ कर जेल में डलवा दिया।
फिर राजा ने मंत्री से पूछा मेरे लिए तो अच्छा हुआ मगर आपको तो जेल में रहना पड़ा उसमें आपका क्या अच्छा हुआ तो मंत्री ने कहा- महाराज जेल में गिरवाया वो भी बहुत अच्छा। राजा ने कहा- इसमें क्या अच्छा है तो मंत्री ने कहा अगर मैं आपके साथ होता तो आप तो खंडित बलि समझकर छोड़ दिए जाते लेकिन मैं तो सम्पूर्ण बलि चढ़ जाता।
✺ इसलिए जो कुछ हो रहा है वो बहुत अच्छा हो रहा है। हर घटना के पीछे जो कल्याण समाया हुआ होता है उसको हम नहीं देख पाते और हम क्वेश्चन उठाना शुरू कर देते हैं। ऐसा क्यों हो गया? ये क्यों? लेकिन जो कुछ हो रहा है सही हो रहा है हर घटना के पीछे कुछ न कुछ कल्याण समाया है।
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✺ कई बार कोई ऐसी घटना होती उस समय लगता बहुत बुरा हुआ।लेकिन समय बीतने के बाद लगता सही हुआ। हम समझ नहीं पाते।
इस ड्रामा में सृष्टि चक्र में जो कुछ हो रहा हर बात में कोई न कोई कल्याण है। कई कहते- बहन जी, क्या कल्याण है इतना पाप बढ़ रहा। इसके पीछे क्या कल्याण है??
इसके पीछे भी कल्याण है ये विनाश हो तभी तो नई दुनिया स्वर्ग आयेगा। हर बात के पीछे कल्याण है। स्वास्तिका इसी बात का प्रतीक है जो कुछ हो रहा सब राईट हो रहा। हर बात में कोई न कोई कल्याण समाया हुआ है।
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सृष्टि चक्र का चित्र देखें।
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इसमें 4 युग दिखाए हैं। सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग।
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✺ सृष्टि चक्र का पहला भाग सतयुग
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– स्वस्तिका का हाथ राईट हैण्ड साइड पर
– सत्यता का युग
– सूर्यवंशियों की दुनिया
– श्री लक्ष्मी और श्री नारायण का राज्य
चित्र में जो राईट भुजा दिखाई। राईट माना राईटियस।हम हर शुभ कार्य राईट हैण्ड से ही करते हैं जैसे-पूजा करना है, आशीर्वाद देना है, प्रसाद लेना है या कुछ भी करना है, अच्छा कार्य करना है तो राईट हैण्ड से ही करते हैं। यहाँ से शुभ युग की शरुआत हुई। सतयुग की शरुआत। जो पहला पहर माना जाता है। जैसे दिन और रात का चक्र है नित्य चलता रहता है लेकिन पहला पहर सुबह को कहा जाता इसी प्रकार सतयुग पहला पहर है। यह सृष्टि ऐसी नहीं थी, जब भगवान ने बनाई थी।भगवान की रचना बिल्कुल श्रेष्ठ होती है उसमें कोई भी डिफेक्ट नहीं होता। बाईबल में जेनिसिस चैप्टर वन में एक बहुत सुंदर लाइन आती है – जब भगवान ने सृष्टि बनाई थी तो वह समय कैसा था। तो कहा कि गॉड मेड मैन इन हिज ओन इमेज
(God made man in his own image) अर्थात भगवान ने मनुष्य को अपने स्वरुप में बनाया था।
यह दुनिया सतयुगी दुनिया थी जिसे गोल्डन ऐज कहा जाता था।यहाँ श्री लक्ष्मी-नारायण 👑 का राज्य था। एक धर्म, एक राज्य, एक भाषा, एक कुल और एकमत होता है बहुत सुख और शांति की दुनिया होती है लेकिन ये भी सृष्टि का नियम है कि हर चीज़ परिवर्तनशील है यहाँ कोई भी चीज़ हमेशा एक जैसी नहीं रहती। हर नई चीज़ को एक दिन पुरानी जरूर होना होता है तो जब ये सतयुगी दुनिया🌐 थी।(5000 वर्ष का चक्र है) हरेक युग का समय 1250, 1250, 1250, 1250 वर्ष होता है।तो जब 1250 वर्ष बीते तो जरूर है हर नई चीज़ तो पुरानी होगी।
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✺ सृष्टि चक्र का दूसरा भाग – त्रेतायुग
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– त्रेतायुग – स्वस्तिका का हाथ राईट हैण्ड साइड पर लेकिन नीचे की ओर।
– त्रेतायुग – चौदह कलाधारी।
– चन्द्रवंशियों की दुनिया।
– श्रीराम और श्री सीता का राज्य।
त्रेता यानि जहाँ थोड़ी त्रुटि आ गयी।आत्माओं में त्रुटि आ गयी इसलिए हाथ नीचे आ गया तो फिर त्रेतायुग कहलाया, नीचे की तरफ भुजा दिखाई। त्रेतायुग अर्थात सिल्वर ऐज, चाँदी की दुनिया।यहाँ भी एक धर्म एक कुल एकमत सब एक होता है लेकिन थोड़ी सी तो कम
ी आ गयी ना।हर नई चीज़ को यूज़ करो उसकी चमक में थोड़ी तो कमी आएगी ना।तो त्रेतायुग कहलाया।यहाँ भी सुख शांति सब होता है ।इस सतयुग, त्रेतायुग को मिला कर स्वर्ग कहा जाता है ये बहुत सुख चैन की दुनिया🌏 थी इसके बाद 2500 वर्ष का समय पूरा हो गया।
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✺ सृष्टि चक्र का तीसरा भाग – द्वापर युग
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– द्वापर युग – स्वास्तिका का हाथ लेफ्ट हैण्ड साइड पर घूम गया।
– दो पुरों का आरम्भ(जीवन में अनराइटियस और राइटियस , दुःख-सुख, शांति-अशांति , प्रेम- नफरत,दोनों साथ- साथ चलने लगे)
– द्वैतता का राज।
– दुःख का समय आ गया और भगवान को याद करना और उनसे माँगना। शुरू कर दिया।
इसके बाद लेफ्ट हैण्ड दिखाया। लेफ्ट हैण्ड माना अशुभ युग की शरुआत। द्वापर जहाँ पर हर चीज दो-दो हिस्सों में बँटनी शुरू हो गयी। जहाँ एक धर्म, एकमत, एक भाषा थी सतयुग में।
यहाँ अलग-अलग मतें होने लगी।जब अलग-अलग मतें होने लगी तो मतभेद होने लगे।जहाँ मतभेद होगा तो अशांति लड़ाई- झगड़े भी होंगे।
ये भी सृष्टि का नियम है जब-जब यहाँ गिरावट आई तब-तब कोई महान आत्मा👵 भी आती रही।तो द्वापर युग में जब मतभेद अशांति हुई तो धर्म पितायें आये।
✺ आज से 2500 वर्ष पहले इब्राहिम आये।इब्राहिम ने देखा कि लोग किस तरह आपस में लड़ाई झगड़ा कर रहे और उनके जीवन में कोई सिद्धांत नहीं, नियम नहीं इसलिए कुछ नियम बनाकर देने चाहिए तो उन्होंने लॉज़ टू ह्यूमन लाइफ दिए।
✺ 2250 वर्ष पहले महात्मा बुद्ध आये।
महात्मा बुद्ध ने लोगों के कर्मो को देखते हुए, समय को देखते हुए उन्होंने प्रचार आरम्भ किया और कहा-
कर्म ही धर्म है।
दया ही धर्म है।
अहिंसा परमोधर्म।
✺ आज से 2000 वर्ष कुछ पहले क्राइस्ट आये।उन्होंने देखा कि लोग झूठ बोलते हैं, सफेद झूठ बोलते हैं, वो भी पॉलिश फॉर्म में।इसलिए क्राइस्ट ने प्रचार किया।ट्रुथ इज गॉड।दूसरी बात समाज के अंदर देखा कि मनुष्य ही मनुष्य के प्रति नफ़रत कर रहा। इसलिए उन्होंने कहा – लव इस गॉड(Love is God) अर्थात प्रेम 💕ही ईश्वर है, आप एक दूसरे से प्रेम करो। क्राइस्ट ने भी मानव को अच्छी शिक्षा दी लेकिन इसके बावजूद क्या आ गया, कलयुग।
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✺ सृष्टि चक्र का चौथा भाग – कलयुग
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– कलयुग- स्वास्तिका का हाथ लेफ्ट हैण्ड साइड पर ऊपर की ओर
– कलह क्लेश का युग/अधर्म का युग
अधर्म का विनाश कर सत्य धर्म की स्थापना के लिये परमात्मा का आगमन
– कलयुग की अन्तिम निशानियों का वर्णन शास्त्रों में
द्वापर के बाद कलयुग आया। ऊपर की तरफ भुजा दिखाई अर्थात हर चीज़ अति में चली गयी। पाप, भ्रष्टाचार, मँहगाई, जनसंख्या, फ़ैशन, भक्ति भी।आज भक्ति भी कोई कम नहीं है तो इस तरह जब हर चीज़ अति में चली जाती है।कलह युग हो जाता है, दुनिया बिल्कुल बिगड़ जाती है, ऐसे बिगड़ी दुनिया को फिर से नया बनाने के लिए भगवान को आना पड़ता है।कलयुग की 4 निशानियाँ दिखाते हैं ना। सृष्टि के अन्त के लक्षण।
✺ कहते हैं जब महाभारत युद्ध हुआ। महाभारत को भी कहते आज से 5000 वर्ष पहले महाभारत युद्ध हुआ।और उसके बाद जब श्रीकृष्ण जी विदाई लेने लगें तो पांडवों ने कहा- भगवन अब, कब मिलना होगा। तो श्रीकृष्ण जी ने कहा- जब धर्म ग्लानि का समय होगा। तो पांडवों ने कहा- हम कैसे पहचानेंगे कि ये धर्म ग्लानि का समय है?? तो कहा जाओ चारों दिशाओं में जाओ और जो विचित्र चीज दिखाई दे उसको देखकर, आकर मुझे बताओ।पाँचो भाई अलग-अलग दिशा में गये।पाँचो भाई लौटकर आये और आश्चर्यजनक घटनाओं का वर्णन करने लगे। सर्वप्रथम युधिष्ठर ने कहा – मैंने एक हाथी देखा, जिसकी दो सूंड थी।अर्जुन ने कहा- मैंने एक ऐसा पक्षी 🕊देखा जिसके पैरों में वेद शास्त्र📜 बँधे हुए थे और उसके पंखों पर मन्त्र लिखे हुए थे परन्तु वह मांस का भक्षण कर रहा था। भीम ने कहा- मैंने एक ऐसी गाय देखी जो अपनी बछड़ी का दूध पी रही थी। नकुल ने कहा- मैंने तीन कुए देखे।पहला कुआँ भरा था लेकिन उसके पास एक खाली कुआँ था। इन दोनों से दूर एक , भरा हुए एक तीसरा कुआँ था, जो खाली कुए को पानी दे रहा था।सहदेव ने कहा- मैंने एक ऐसा पहाड़ से पत्थर फिसलते देखा जो रास्ते के सारे पेड़ों को गिराता हुआ आ रहा था।वही पत्थर एक घास के तिनके🌱 के सहारे रुक गया।
इस तरह सबने भगवन को अपनी बात कही। तब भगवान ने इन सभी का आध्यात्मिक रहस्य स्प
ष्ट करते हुए कहा कि दो सूंड वाला हाथी राज्यसत्ता का प्रतीक है। धर्म ग्लानि के समय का राजा( राजनीतिज्ञ) अमीर व गरीब दोनों से खायेगा। दोनों से लगान के रूप में पैसे वसूल करेगा। उसके मन में दया व सेवा की भावना नहीं रहेगी। जो पक्षी मांस खा रहा था माना कलयुग के अंत में तथाकथित ब्राह्मण, पण्डित, पुजारी
आदि मन्त्रों के ज्ञाता होते हुए भी भ्रष्ट आचरण वाले होंगे। गाय🐄 द्वारा बछड़ी का दूध पिया जाना इस बात का प्रतीक है कि कलयुग के अंत में माता-पिता भी बेटी का कमाया हुआ खाएंगे। तीन अलग-अलग कुओं का रहस्य है धर्म ग्लानि के समय मनुष्य अपने माता-पिता तथा अति नज़दीक सम्बन्धियों से दूर हो जाएंगे और दूर दराज़ के लोगों से मदद व लेन देन करेंगे। पहाड़ से गिरता पत्थर🏈 धर्म की गिरावट का प्रतीक है।इस गिरावट से बड़े-बड़े विद्वानों का भी पतन हो जाएगा। अन्त में तृष्णा🍂 समान हल्के, बिंदु🌟 रूप भगवान शिव के द्वारा मानव मात्र को ज्ञान योग की शरण दी जायेगी, तब गिरावट बन्द होगी।
✺ तो स्वयं से पूछिए क्या आज ये समय नहीं है ?? 5000 वर्ष पहले भी वो समय बताते हैं आज फिर वही समय दिखाई दे रहा है तो ऐसा जब समय आ जाता है तो इस कलयुग के अन्त में एक छोटा सा युग होता है 100 वर्ष का। जिसे संगमयुग कहते हैं। जिसमें स्वयं परमात्मा आकर एक साधारण मानवीय तन में परकाया प्रवेश करते हैं और जिसको ‘प्रजापिता ब्रह्मा’ नाम देते।
जो आत्मा ज्ञान योग से अपने जीवन को पवित्र श्रेष्ठ बनाती हैं वो पवित्र दुनिया सतयुगी दुनिया में जाती।जो नहीं बनाते वो सजायें खाकर ऊपर परमधाम में (चित्र में देखें) जाकर बैठ जाती।
✺ तो इस तरह गीता में दिए अपने वायदे अनुसार (यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत….)
5000 वर्ष के बाद परमात्मा✨का इस सृष्टि पर अवतरण होता है। इस 5000 वर्ष के चक्र को एक कल्प भी कहा जाता है तो भगवान जो हैं वो युगे-युगे नहीं आते बल्कि कल्प के युगे-युगे आते हैं। हर युग में भगवान के आने की जरूरत नहीं लेकिन कल्प के युगे-युगे आते हैं अर्थात हर 5000 वर्ष में एक बार आते हैं संगमयुग पर।
✺ अब देखिये अगर युगे- युगे आये तो भी 4 बार आना चाहिए फिर हम कहते भगवान तो 24 अवतार लेता है।24 अवतार कहाँ से आये?? फिर हम कह देते भगवान सब जगह हैं तो फिर तो आने की बात ही नहीं रहती।भगवान कहते न मैं 24 अवतार लेता हूँ न युगे-युगे आता हूँ।
मैं कल्प के युगे-युगे अर्थात हर कल्प में, हर 5000 वर्ष के बाद आता हूँ एक बार और आकर फिर इस पतित दुनिया को, बिगड़ी हुई दुनिया को, नई बनाता हूँ।
✺ देखो जब सुबह है तो लाइट जलाने की जरूरत नहीं सूरज निकला है लेकिन जब शाम होती हैं जिसके पास जैसी-जैसी सुविधा होती है वो रोशनी करता है।रात में आप हजार बल्ब💡 जलाओ लेकिन रात तो रात ही रहेगी।अब अगर सूर्य🌞 निकल आये तो रोशनी की जरूरत नहीं। इसी तरह सतयुग, त्रेता तो दिन थे यहाँ भगवान को आने की जरूरत नहीं।द्वापर से जब शाम शरू होती है धर्म-पितायें आते हैं मनुष्यों को रोशनी देने।
✺ आज कलयुग 🌒में हजारों लाखों गुरु 👵हैं लेकिन कोई नई दुनिया नया सवेरा ला सका ?? तब कहते – ज्ञान सूर्य प्रगटा अज्ञान अंधेर विनाश’।जब ज्ञान सूर्य परमात्मा आते हैं तब ही नई सृष्टि नया सवेरा आता है।नई दुनिया बनाना कोई का भी काम नहीं परमात्मा का कार्य है तो जैसे नया मकान हम बनाते हैं रहने के लिए बनाते हैं जब मकान में थोड़ी बहुत टूट-फूट होती हैं तो हम उसे सारे को थोड़े ही तोड़ देंगे।पहले रिपेयर कराएंगे।अगर बिल्कुल रहने लायक नहीं रहे तो तोड़के नया बनाया जाता है।
✺ इसी तरह सतयुग त्रेता तो नई दुनिया हैं वहाँ भगवान को आने की जरूरत है?? द्वापर में जब टूट- फूट शुरू होती है हमारे धर्मपितायें आते हैं एक तरह से रिपेयरिंग का कार्य करते हैं लेकिन कितना भी रिपेयर करो। एक दिन तो जर्जरी भूत अवस्था होती ही है तो फिर तोड़के नया बनाया जाता है।तो दुनिया जब बिल्कुल बिगड़ जाती है तो इस बिगड़ी को बनाने के लिए परमात्मा को स्वयं इस सृष्टि पर आना पड़ता है।
✺ परमात्मा का इस सृष्टि 🌏पर आना कल्प में केवल एक बार होता है 5000 वर्ष में। अब आपको बताये इस सृष्टि पर परमात्मा को आये 80 वर्ष हो गए और परमात्मा एक ऐसा सुन्दर और श्रेष्ठ समाज तैयार करते हैं इसलिए आपको बताया 10 लाख भाई-बहनें जो हैं, न उनके जीवन में व्यसन है किसी तरह का, न और कुछ बुराई लेकिन उनका सात्विक पवित्र जीवन, जो अपने जीवन को धारणाओं से श्रेष्ठ बना रहे हैं। ये तो नहीं कहेगें कि उनके जीवन से सारी बुराईयाँ 😡ख़त्म हो गयी लेकिन जब से उन्होंने इस चीज़ को अपनाया काफ़ी हद तक उनके जीवन में परिवर्तन आया है और अपने जीवन को वो दिन प्रतिदिन श्रेष्ठ बना रहे हैं तो अब ये कार्य चल रहा है थोड़ा सा समय बचा है। बहुत गई थोड़ी रही थोड़ी की भी थोड़ी रही।
इसलिए भगवान कहते- अब जाग्रत हो जाओ। सृष्टि परिवर्तन का समय है अब अपने को परिवर्तन कर लेंगे तो उस दुनिया म
ें (सतयुग में) जाने के हम अधिकारी बन जायेंगे और नहीं जागे तो ऐसे ही रह जायेंगे फिर ऐसी ही दुनिया में आना पड़ेगा नई दुनिया में नहीं।
✺ आपने पहले भी कोर्स किया था क्या तो आप क्या जवाब देंगे ?? कहते हैं ना बनी बनाई बन रही अब कुछ बननी नाहि। 5000 वर्ष पहले भी आपने ऐसे ही कोर्स किया था अब फिर से कर
रहे हैं। हर 5000 वर्ष के बाद ये ड्रामा सृष्टि चक्र हूबहू रिपीट होता है जैसे- कोई कैसेट बन गयी, आप कितनी भी बार चलाएंगे हूबहू वही सीन आयेंगे। इस तरह ये बना बनाया ड्रामा भी अविनाशी है 5000 वर्ष बाद हूबहू रिपीट होता। इसलिए कई बार हम किसी स्थान पर पहली बार जाते लेकिन कई बार लगता मैं पहले भी🤔 आ चुका हूँ या किसी से मिलेंगे सोचेंगे मैं पहले भी मिल चुका हूँ या कोई सीन आपको लगेगा ये पहले भी घटित हो चुका है, क्योंकि आत्मा के अंदर वो 5000 वर्ष की रिकॉर्डिंग भरी हुई है क्योंकि 5000 वर्ष पहले इसी स्थान पर आया था अब फिर आया हूँ। स्मृति जाग्रत हो जाती।
5000 वर्ष में ये चक्र हूबहू रिपीट होता है पहले भी आप ऐसे ही आये थे 5000 वर्ष के बाद भी आओगे।
✺ तो इसका ज्ञान परमात्मा इसलिए देते कि बच्चे जो कुछ भी हो गया बीत गया उसको बीती सो बिंदी लगा दो।जैसे- पता चले की नाटक चल रहा है शूटिंग📹 हो रही तो एक्टर कितना अलर्ट हो जाता है। हम जो करेंगे वो सब शूट होता हैं इसलिए अब क्या करना है हमें अपने कर्म पर अपने एक्शन पर ध्यान देना है, अच्छे से अच्छा करना है ताकि अच्छे से मेरी रील हो।
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✺ तो 5000 वर्ष का ये सृष्टि चक्र है परमात्मा✨ का अवतरण इस संगमयुग के समय होता है इस समय साधारण तन में आता इसलिए कोटो में कोई कोई में भी कोई उसे पहचान पाता है।परमात्मा ब्रह्मा के द्वारा नई दुनिया की स्थापना, शंकर के द्वारा पुरानी दुनिया का विनाश और विष्णु के द्वारा नई दुनिया की पालना का कार्य कराते हैं।
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” विश्व के इतिहास और भूगोल की पुनरावृत्ति” ========================
चित्र में यह भी दिखाया गया है कि कलियुग के अन्त में परमपिता परमात्मा शिव जब महादेव शंकर के द्वारा सृष्टि का 🌋महाविनाश करते हैं तब लगभग सभी आत्मा रूपी एक्टर अपने प्यारे देश, अर्थात मुक्तिधाम को वापस लौट जाते हैं। और सतयुग के आरम्भ से “आदि सनातन देवी-देवता धर्म” कि मुख्य मनुष्यात्मायें इस सृष्टि-मंच पर आना शुरू कर देती हैं फिर 2500 वर्ष के बाद, द्वापरयुग के प्रारम्भ से इब्राहिम के इस्लाम धर्म की आत्मायें, फिर बौद्ध धर्म वंश की आत्मायें, फिर ईसाई धर्म वंश की आत्मायें अपने-अपने समय पर सृष्टि-मंच पर फिर आकर अपना-अपना अनादि-निश्चित पार्ट बजाते हैं और अपनी स्वर्णिम(सतोप्रधान स्थिति), रजत (सतो स्थिति), ताम्र(रजो स्थिति)और लौह (तमोप्रधान स्थिति), चारो अवस्थाओं को पार करती हैं। इस प्रकार यह अनादि निश्चित सृष्टि-नाटक अनादि काल से हर 5000 वर्ष के बाद हुबहू पुनरावृत होता रहता है।
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प्रभु मिलन का गुप्त युग- पुरुषोत्तम संगमयुग
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भारत में आदि सनातन देवी-देवता धर्म के लोग अन्य त्यौहारों की तरह पुरुषोत्तम मास पूरी श्रृद्धा से मनाते हैं। इसमें तीर्थ यात्रा, दान-पुण्य, अमृतवेले गंगा- स्नान करने में बहुत पुण्य लाभ समझते हैं। वास्तव में ” पुरुषोत्तम” शब्द परमपिता परमात्मा का ही वाचक है। जैसे आत्मा को पुरुष कहा जाता है वैसे ही परमात्मा के लिए पुरुषोत्तम शब्द का प्रयोग किया जाता है क्योंकि वे सभी पुरुषों (आत्माओं) से उत्तम हैं।
पुरुषोत्तम मास कलियुग के अन्त और सतयुग के प्रारंभ के संगमयुग की याद दिलाता है जिसमें पुरुषोत्तम (परमात्मा) का अवतरण होता है। कलयुग के अन्त तक तो मनुष्यात्माओं का जन्म पुनर्जन्म होता रहता है। परमात्मा आकर ज्ञान-गंगा में स्नान कराके और सहजयोग सिखाकर ब्रह्मलोक ले जाते हैं परन्तु आज लोग इन रहस्यों को न जानने के कारण गंगा स्नान करते हैं और शिव और विष्णु के स्थूल यादगारों की यात्रा करते हैं।पुरुषोत्तम मास में जिस दान का महत्व है संगमयुग में परमात्मा मनुष्य आत्माओं को बुराई और विकारों का दान देने की शिक्षा देते हैं।
इन रहस्यों को जानकर यदि मनुष्य विकारों का दान दे, ज्ञानगंगा में नित्य स्नान करे और देह से न्यारा होकर सच्ची आध्यात्मिक यात्रा करे तो पुन: सुख-शांति सम्पन्न रामराज्य (स्वर्ग) की स्थापना हो जाएगी।नीचे दिए गए चित्र में दिखाया गया है कि राजयोग द्वारा ही मन का मैल धुलता है, विकर्म दग्ध होते हैं और संस्कार सतोप्रधान बनते हैं।अत: नीचे की ओर नर्क के व्यक्ति ज्ञान एवं योग-अग्नि रूपी ज्वाला प्रज्जवलित करके काम, क्रोध, लोभ,मोह और अहंकार को सूक्ष्म अग्नि में स्वाहा करते दिखाये गये हैं। फलस्वरूप वे वैकुण्ठ में पवित्र एवं सम्पूर्ण सुख-शांति सम्पन्न स्वराज्य के अधिकारी बने हैं।
वर्तमान समय संगमयुग ही चल रहा है।यह कलियुगी सृष्टि दु:खधाम है, निकट भविष्य में सतयुग आने वाला है वही सृष्टि सुख धाम होगी। अत: हमें पवित्र एवं योगी बनना चाहिए।
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★ “राजयोग की यात्रा – स्वर्ग की और दौड़”
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राजयोग के निरन्तर 📚अभ्यास से मनुष्य को अनेक प्रकार की शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। इन 💪शक्तियों के द्वारा ही मनुष्य सांसारिक रुकावटों को पार करते हुए आध्यात्मिक मार्ग की ओर 🏃🏻अग्रसर होता है। आज मनुष्य अनेक प्रकार के 💊रोग, शोक, चिन्ता और परेशानियों से ग्रसित है। यह 🌐 सृष्टि ही घोर नरक बन गई है। इससे निकलकर स्वर्ग में जाना हर एक प्राणी चाहता है। लेकिन नर्क से स्वर्ग की ओर का मार्ग कई रुकावटों से युक्त है। काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार उसके रास्ते में मुख्य बाधा डालते हैं। पुरुषोतम संगम युग में ज्ञान सागर परमात्मा 🌟शिव जो सहज राजयोग की शिक्षा प्रजापिता ब्रह्मा के द्वारा दे रहे हैं, उसे धारण करने से ही मनुष्य इन प्रबल शत्रुओं (5⃣ विकारों) को जीत सकता है।
1. चित्र में दिखाया है कि नर्क से स्वर्ग 🌝 में जाने के लिए पहले-पहले मनुष्य को काम विकार की ऊंची दीवार को पार करना पड़ता है। जिसमें नुकीले शीशों की बाढ़ लगी हुई है। उसको पार करने में कई व्यक्ति देह-अभिमान के कारण सफलता नहीं पा सकते और नुकीले शीशों पर गिरकर लहू-लुहान हो जाते हैं। 👀विकारी दृष्टी, कृति, वृति ही मनुष्य को इस दीवार को पार नहीं करने देती। अत: पवित्र द्रष्टि (Civil Eye) रखना इन विकारों को जीतने के लिए अति आवश्यक है।
2. दूसरा भयंकर विघ्न 😡 क्रोध रूपी अग्नि-चक्र है। क्रोध के वश होकर 🚶🏻 मनुष्य सत्य और असत्य की पहचान भी नहीं कर पाता और साथ उसमें ईर्ष्या, द्वेष, घृणा आदि विकारों का समावेश हो जाता है। जिसकी 🔥अग्नि में वह स्वयं तो जलता ही है, साथ में अन्य मनुष्यों को भी जलाता है। इस बाधा को पार करने के लिए ‘स्वधर्म’ में अर्थात👼🏻 ‘मैं आत्मा शांत स्वरूप हूँ’ – इस स्थिति में स्थित होना अति आवश्यक है।
3. लोभ भी मनुष्य को उसके सत्य पथ से हटाने के लिए मार्ग में खड़ा है। लोभी मनुष्य को कभी भी शान्ति नहीं मिल सकती और वह मन को परमात्मा की याद में नहीं टिका सकता। अत: स्वर्ग की प्राप्ति के लिए मनुष्य को 💰धन व खजाने के लालच और सोने की चमक के आकर्षण से भी जीत पानी है।
4. मोह भी एक ऐसी बाधा है जो जाल की तरह खड़ी रहती है। मनुष्य मोह के कड़े बंधन-वश, अपने धर्म व कार्य को भूल जाता है। और पुरुषार्थ हीन बन जाता है। तभी गीता में भगवान ने कहा है कि ‘नष्टोमोहा स्मृतिर्लब्धा:’ बनो। अर्थात देह सहित देह के सर्व सम्बन्धों के मोह-जाल से निकल कर परमात्मा की याद में स्थित हो जाओ और अपने कर्तव्य को करो। इससे ही स्वर्ग की प्राप्ति हो सकेगी।
5. 😎अंहकार भी मनुष्य की उन्नति के मार्ग में 🌁 पहाड़ की तरह रुकावट डालता है। अहंकारी मनुष्य कभी भी परमात्मा के निकट नहीं पहुँच सकता है। अहंकार के वश मनुष्य पहाड़ की ऊंची चोटी से गिरने के समान चकनाचूर हो जाता है। अत: स्वर्ग में जाने के लिए अहंकार को भी जीतना आवश्यक है। याद रहे की इन विकारों पर विजय प्राप्त करके मनुष्य से देवता बनने वाले 🎎 नर-नारी ही स्वर्ग में जा सकते हैं। वरना हर एक व्यक्ति के मरने के बाद जो यह लिख दिया जाता है कि ‘वह स्वर्गवासी हुआ’, यह बिल्कुल गलत है। यदि हर कोई मरने के बाद स्वर्ग जा रहा होता तो जन-संख्या कम हो जाती और स्वर्ग में भीड़ लग जाती और मृतक के सम्बन्धी मातम न करते।
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